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रूठीरानी

प्रेमचंद

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4413
आईएसबीएन :81-7182-458-7

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रूठीरानी पुस्तक का कागजी संस्करण...

Roothi Rani

कागजी संस्करण

‘रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव चित्र प्रस्तुत किये गये हैं कि पाठक दंग रह जाता है। ‘रूठी रानी’ में बहुविवाह के कुपरिणामों, राजदरबार के षड़्यंत्रों और उनसे होने वाले शक्तिह्रास के साथ-साथ राजपूती सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत स्त्री की हीन दशा के सूक्ष्म चित्र हैं।
प्रस्तुत कृति में प्रेमचन्द ने देश की स्वतन्त्रता के प्रेमियों का आह्वान करते हुए कहा है कि साहस एवं शौर्य के साथ एकता और संगठन भी आवश्यक हैं।

रूठीरानी

शादी की तैयारी

उमादे जैसलमेर के रावल लोनकरन की बेटी थी जो सन् 1586 में राजगद्दी पर सुशोभित था। बेटी के पैदा होने से पहले तो दिल जरा टूटा मगर जब उसके सौन्दर्य की खबर आयी तो आंसू पुंछ गए। थोड़े ही दिनों में उस लड़की के सौन्दर्य की धूम राजपूताने में मच गयी। सखियां सोचती थीं कि देखें यह युवती किस भाग्यवान को मिलती है। वे उसके आगे देश देश के राजों-महाराजों के गुणों का बखान किया करतीं और उसके जी की थाह लेतीं लेकिन उमादे अपने सौन्दर्य के गर्व से किसी को खयाल में न लाती थी। उसे सिर्फ अपने बाहरी गुणों पर गर्व न था, अपने दिल की मजबूती, हौसले की बुलन्दी और उदारता में भी वह बेजोड़ थी। उसकी आदतें सारी दुनिया से निराली थीं। छुई-मुई की तरह जहाँ किसी ने उंगली दिखायी और यह कुम्हलायी। मां कहती- बेटी, पराये घर जाना है, तुम्हारा निबाह क्योंकर होगा ? बाप कहता बेटा, छोटी-छोटी बातों पर बुरा नहीं मानना चाहिए। पर वह अपनी धुन में किसी की न सुनती थी। सबका जवाब उसके पास खामोशी थी कोई कितना ही भूंके, जब वह किसी बात पर अड़ जाती तो अड़ी ही रहती थी।

आखिर लड़की शादी करने के काबिल हुई। रानी ने रावल से कहा-‘‘बेखबर कैसे बैठे हो, लड़की सयानी हुई, उसके लिए वर ढूंढ़ों, बेटी के हाथों में मेंहदी रचाओ।’’
रावल ने जवाब दिया-‘‘जल्दी क्या है, राजा लोगों में चर्चा हो रही है, आजकल में शादी के पैगाम आया चाहते हैं। अगर मैं अपनी तरफ से किसी के पास पैगाम भेजूंगा तो उसका मिजाज आसमान पर चढ़ जाएगा।’’
मारवाड़ के बहादुर राजा मालदेव ने भी उमादे के संसारदाहक सौन्दर्य की ख्याति सुनी और बिना देखे ही उसका प्रेमी हो गया। उसने रावल से कहला भेजा कि मुझे अपना बेटा बना लीजिए, हमारे और आपके बीच पुराने जमाने से रिश्ते होते चले आए हैं। आज कोई नयी बात नहीं है।

रावल ने यह पैगाम पाकर दिल में कहा वाह, मेरा सारा राज तो तहस-नहस कर डाला अब शादी का पैगाम देते हैं ! मगर फिर सोचा कि शेर पिंजरे में ही फंसता है, ऐसा मौका फिर न मिलेगा। हरगिज न चूकना चाहिए। यह सोचकर रावल ने सोने-चांदी के नारियल भेजे। राव मालदेव जी बारात सजाकर जैसलमेर ब्याह करने आए। चेता और कोंपा जो उसके सूरमा सरदार थे, उसके दाएं-बाएं चलते थे।

रावल ने अपनी रानी को बुलाया और किले के झरोखे से राव मालदेव की सवारी दिखाकर कहा-‘‘यह वही आदमी है जिसके ड़र से न मुझे रात को नींद आयी है और न तुझे कल पड़ती है। यह अब इसी दरवाजे पर तोरन बांधेगा जो अक्सर उसी के डर के मारे बन्द रहता है। मगर देख मैं भी क्या करता हूं। अगर चंवरी में से बचकर चला गया तो मुझे केवल रावल मत कहना। बेटी तो विधवा हो जाएगी पर तेरे दिल का कांटा जन्म भर के लिए निकल जाएगा, बल्कि सारे राजपूताने को अमन-चैन हासिल हो जाएगा।’’

रानी यह सुनकर रोने लगी। रावल ने डांटकर कहा-‘‘चुप ! रोने लगी तो बात फूट जाएगी, फिर खैरियत नहीं, यह जालिम सभी को खा जाएगा। देख जरा, शादी करने आया है मगर फौज साथ लाया है कि जैसे किसी से लड़ने जा रहा हो इतनी फौज तो गढ़सोलर का सारा पानी एक ही दिन में पी जाएगी। हम तुम और सब शहर के बाशिन्दे प्यासे मर जाएंगे।’’
रानी को बेटी के विधवा हो जाने के डर से शोक तो बहुत हुआ मगर पति की बात मान गयी और छाती पर पत्थर रखकर चुप ही रही। उसकी घबड़ाहट और परेशानी छिपाए नहीं छिपती थी।

बेटी, मां को घबरायी हुई देखकर, समझ गयी कि दाल में कुछ काला है, मगर कुछ पूछने की हिम्मत न पड़ी। बेटी की जात, इतनी ढिठाई कैसे करती ? मां का रोना मुहब्बत का रोना न था। जब उसने मां की बेचैनी हर क्षण बढ़ते हुए देखी तो ताड़ गयी कि आज सुहाग और रंडापा साथ मिलने वाला है। जी में बहुत तड़पी, तिलमिलायी, मगर कलेजा मसोसकर रह गयी। क्या करती ? हमारे यहां बेटी बिन सींगों की गाय है। मां बाप उसके रखवाले हैं। मगर जब मां बाप ही उसकी जान के गाहक हो जाएं तो कौन किससे कहे।
सखी सहेलियां फूली-फूली फिरती थीं। राजमहल में शादियाने बज रहे थे, चारों तरफ खुशी के जलवे नजर आते थे। मगर अफसोस, किसी को क्या मालूम
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1.    जैसलमेर की एक झील।

कि जिस दुल्हन के लिए यह सब हो रहा है, वह अन्दर ही अन्दर घुली जा रही है। सखियां उसे दुल्हन बना रही हैं, कोई उसके हाथ-पांव में मेंहदी रचाती है, कोई मोतियों से मांग भरती है, कोई चोटी में फूल गूंथती है, कोई आइना दिखाकर कहती है-खूब बन्नी। पर यह कोई नहीं जानता कि बन्नी की जान पर आ बनी है। ज्यों-ज्यों दिन ढलता है, उसके चेहरे का रंग उड़ता जाता है। सखियां और ही ध्यान में हैं, यहां बात ही और है।
उमादे यकायक सखियों के झुरमुट से उठ गयी और भारीली नाम की एक सुघड़ सहेली को इशारे से अलग बुलाकर कुछ बातें करने लगी।

भारीली रूप बदलकर चुपके से राघोजी ज्योतिषी के पास गयी और पूछने लगी-‘क्या आपने किसी कुंवारी कन्या के ब्याह का मुहूर्त निकाला है ?’’ उन्होंने जवाब दिया-‘‘और किसी का तो नहीं, रावल जी की बाई के ब्याह का मुहूर्त अलबत्ता निकाला है।’’
भारीली-‘‘क्या आप फेरों के वक्त भी जाएंगे ?’’
ज्योतिषी-‘‘न जाऊँगा तो मुहूर्त की खबर कैसे होगी ?’’
भारीली-क्या इस शहर में आप और भी कहीं मुहूर्त बताते और शादियां करवाते हैं ?’’
ज्योतिषी-‘‘सारे शहर में मेरे सिवा और है ही कौन। राजा प्रजा सब मुझी को बुलाते हैं।’’
भारीली-‘‘ज्योतिषी जी, नाराज न होना, जिन लड़कियों की शादियां आप करवाते हैं वह कितनी देर तक सुहागिन रहती हैं ?’’
ज्योतिषी-(चौंककर) ‘‘हैं, यह तूने क्या कहा ? क्या मुझ से दिल्लगी करती है ?’’
भारीली-‘‘नहीं ज्योतिषी जी, दिल्लगी तो नहीं करती, सचमुच कहती हूं।’’
ज्योतिषी-‘‘इन बातों का जवाब मेरे पास नहीं। तेरा मतलब जो कुछ हो साफ-साफ कह।’’
भारीली-‘‘कुछ नहीं, आप अपने मुहूर्त को एक बार और जांच लीजिए।’
ज्योतिषी-‘‘कुछ कहेगी भी ?’’
भारीली-‘‘आप अपनी साइत फिर से देख लीजिए तो कहूं।’’
ज्योतिषी-‘‘चल दूर हो, बूढ़ों से खेल नहीं करते।’’
यह कहकर ज्योतिषी जी अन्दर चले गए, मगर फिर सोच-विचारकर पट्टी निकाली, साइत को खूब अच्छी तरह जांचा और उंगलियों पर गिन-गिनकर बोले, मुहूर्त में कोई दोष नहीं है।

भारीली-(उदास स्वर में) ‘‘तो फिर किस्मत की फूटी होगी।’’
ज्योतिषी-(भौचक होकर) ‘‘नहीं मैंने जन्मपत्री देखकर मुहूर्त निकाला था।’’
भारीली-‘‘अजी करमपत्री भी देखी है। तुम्हारे मुहूर्त में तो बाई जी को दुःख भोगना लिखा है।’’
ज्योतिषी-(तह को पहुंचकर) ‘‘तो क्या रावल जी दगा फरेब करने वाले हैं ?’’
भारीली-‘‘उहां रावल मालदेव को यों तो मारने से रहे, अब सलाह हुई है कि शादी के वक्त चंवरी में उन्हें मार डालें।’’
ज्योतिषी-‘‘अरे, राम-राम ! ऐसे राजाओं को धिक्कार है।’’
भारीली-‘‘महाराज, इस वक्त इन बातों को तो रक्खो, अगर रिहाई की कोई तदबीर हो तो बतलाओ।’’
ज्योतिषी-‘‘जब रावल जी ही को बेटी पर रहम नहीं आता तो मैं गरीब ब्राह्मण क्या कर सकता हूं।’’
भारीली ‘‘इंसान चाहे तो सब कुछ कर सकता है।’’

ज्योतिषी-‘‘तू ही बता मैं क्या करूं ?’’
भारीली-‘‘अच्छे ज्योतिषी हो ! राजदरबारी होकर मुझसे पूछते हो कि मैं क्या करूं।’’
ज्योतिषी-‘‘राजदरबारी होने से क्या होता है। तूने सुना नहीं, गुरु विद्या और सिर सिर बुद्धि।’’
भारीली-‘‘तो फिर मेरी तो यही सलाह है कि राव मालदेव को सावधान कर देना चाहिए।’’
ज्योतिषी-‘‘हां, ऐसा हो सकता है।’’
भारीली-‘‘तो क्या मैं बाई जी से जाकर कह दूं कि तुम्हारा काम हो गया ?’’
ज्योतिषी-‘‘हां, ऐसा हो सकता है।’’
भारीली-‘‘जी हां !’’
ज्योतिषी-‘‘अच्छा, मैं जाता हूं।’’


शादी


दिन ढल गया। बाजार में छिड़काव हो गया। लोग बारात देखने के लिए घरों से उमड़े चले आते हैं। ज्योतिषी ने दरबार में जाकर राव से कहा-‘‘अब अगवानी करने का समय पास आ गया है। अब सवारी की तैयारी का हुक्म दीजिए।’’
रावल-‘‘बहुत अच्छा। बारातवालों को भी इसकी खबर कर दो।’’
ज्योतिषी-‘‘हाँ, खूब याद आया, एक बात मुझे मारवाड़ के ज्योतिषियों से पूछनी है।’
रावल-‘‘क्या ?’’

ज्योतिषी-‘‘जन्मपत्री से तो नहीं, पर बोलते नाम से राव जी को आज चौथा चन्द्रमा और आठवां सूरज है।’’
रावल-‘‘तो इससे क्या, मुहूर्त तो आपने जन्मपत्री से ही निकाला है।’’
ज्योतिषी-‘‘महाराज पुकारने के नाम से भी ग्रह देखे जाते हैं। चौथा चन्द्रमा और आठवां सूरज अशगुन होता है। कोई ग्रह बारहवां नहीं है, तो...’’
रावल (जी में) क्या अच्छा होता जो कोई बारहवां ग्रह भी होता ताकि तीनों असगुन एक जगह हो जाते। प्रकट मारवाड़ बड़ा राज्य है। वहां ज्योतिषियों की कमी नहीं है। उन्होंने जरूर सब बातों को विचार लिया होगा। आप कुछ कहिएगा नहीं तो उन्हें खामखाह शक हो जाएगा।
ज्योतिषी-‘‘उन्हें सचेत कर देना मेरा धर्म है। मैं आपके खानदान का हित चाहने वाला हूं। मैं अभी जाकर उनसे कहता हूं कि विपत्ति को काटने की कोई युक्ति कीजिए।’’
रावल-क्या युक्ति हो सकती है ?’’

ज्योतिषी-‘‘यही दान-पुण्य आदि।’’
रावल-‘‘यह सब मैं अपनी तरफ से करा दूंगा। उनसे कहने की क्या जरूरत है।’’
ज्योतिषी-‘‘नहीं, यह दान उन्हीं की तरफ से होना चाहिए।’’
रावल-‘‘क्या मेरी तरफ से होने में कुछ बुराई है ?’’
ज्योतिषी-‘‘अपनी तरफ से तो तब दान कराया जाता जब बाई के ग्रह खराब होते।’’
रावल-‘‘आज बाई जी का ग्रह कैसा है ?’’
ज्योतिषी-‘‘बहुत अच्छा, बहुत शुभ। फिर औरत के ग्रहों का अच्छा या बुरा होना अधिकतर उसके पति के ग्रहों पर आधारित होता है। इसलिए बाई जी का भी वही ग्रह समझना चाहिए जो राव जी का है।’’


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